ब्लूम टैक्सनॉमी (Bloom’s Taxonomy) हिंदी में एक महत्वपूर्ण विषय है। यह टैक्सनॉमी सामान्य परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्नों से संबंधित होती है।
लेकिन कई लोग अभी भी इसके बारे में कुछ नहीं जानते हैं और उनका सवाल हमेशा रहता है कि वास्तव में ब्लूम टैक्सनॉमी क्या है और इसे कितने भागों में विभाजित किया जाता है? ब्लूम टैक्सनॉमी का उद्देश्य क्या है?
इसलिए, हम इस लेख में इससे संबंधित हर जानकारी को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करेंगे। तो चलिए, हम इसकी शुरुआत करते हैं।
ब्लूम टैक्सनॉमी क्या है? (हिंदी में ब्लूम टैक्सनॉमी)
ब्लूम टैक्सनॉमी का हिंदी में अर्थ होता है “ब्लूम का वर्गीकरण”. यह शिक्षा के सीखने के उद्देश्यों से संबंधित है।
इस वर्गीकरण में, सीखने की प्रक्रिया को शामिल किया जाता है। इसमें, शिक्षा के द्वारा सीखने की प्रक्रियाओं को वर्गीकृत किया जाता है।
डॉक्टर बेंजामिन ब्लूम ने इस वर्गीकरण को विकसित किया है। वे इसे सन १९५६ में बनाया था।
डॉक्टर बेंजामिन ने शिक्षा के विचारों को बढ़ाने के लिए इस वर्गीकरण की रचना की थी। ब्लूम टैक्सनॉमी तीन मॉडल के एक समूह का हिस्सा है, और इसका उपयोग शैक्षिक सीखने के उद्देश्यों को विभिन्न विशिष्टता और जटिलता के स्तरों में वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है।
ब्लूम का वर्गीकरण ( Bloom Taxonomy In Hindi )
ब्लूम के वर्गीकरण में तीन सज्ञानात्मक, भावनात्मक और मनोशारीरिक पक्ष में सीखने के उद्देश्यों को शामिल किया गया है।
1. सज्ञानात्मक पक्ष
सज्ञानात्मक पक्ष हमारी दिमागी क्षमता एवं सोच से संबंधित होता है। 1956 में इसमें कुल 6 स्तर शामिल किए गए थे। ( ज्ञान, समझ, अनुप्रयोग, विश्लेषण, संश्लेषण, मूल्यांकन) लेकिन लगभग 2000 एक किस से रिवाइज किया गया और पिछले स्तरों को नए रूप में शामिल किया गया। जो कि निम्न प्रकार हैं।
याद रखना ( Remembering ) – इसका अर्थ है कि आपने जो ज्ञान अर्जित किया है उससे अपने दिमाग में याद रखना और समय आने पर उस ज्ञान को वापस से स्मरण करना।
समझना ( Understanding ) – इस स्तर के अंतर्गत बताया गया है कि आप अपने प्राप्त किए गए ज्ञान को कब कहां और किस तरह से प्रयोग कर रहे हैं। प्राप्त किए गए ज्ञान को सही समय एवं जगह पर उपयोग तभी किया जा सकता है जब उस ज्ञान पर हमारी समझ विकसित हुई हो।
लागू करना ( Applying ) – जब सिखाया गया ज्ञान हम सही समय पर उपयोग कर पाते हैं तो इसे ही ज्ञान को लागू करना कहा जाता है।
विश्लेषण ( Analysing ) – जब अर्जित किए गए ज्ञान को लागू कर लिया जाता है तब उस ज्ञान के विभिन्न भागों जैसे तथ्यों एवं निष्कर्षों का विश्लेषण किया जाता है। लागू करने के पश्चात हम उस ज्ञान का विश्लेषण करते हैं कि हमने अपने ज्ञान का उपयोग किया है तो उसका निष्कर्ष क्या निकला है?
मूल्यांकन ( Evaluating ) – विश्लेषण करने के बाद अपने ज्ञान का मूल्यांकन करना कि जिस उद्देश्य से ज्ञान का इस्तेमाल किया गया है वह उद्देश्य पूरा हुआ है या नहीं? उद्देश्य पूरा नहीं हुआ है तो हमें अर्जित किए हुए ज्ञान को फिर से समझना होगा।
रचना ( Creating ) – मूल्यांकन करने के पश्चात उसी ज्ञान के द्वारा एक नई ज्ञान का रचना करना ही रचना कहलाता है। जब हम कोई ज्ञान अर्जित कर लेते हैं और उस ज्ञान के आधार पर कोई नए चीज की रचना करते हैं।
2. भावनात्मक पक्ष
भावनात्मक पक्ष हमारे हृदय के भाव से जुड़ा हुआ है। इसमें कुल 5 स्तर होते है। इन सभी स्तरों के मायने भी संख्यात्मक पक्ष की तरह है।
अनुकरण ( Receiving ) – इस स्तर में बच्चों को अनुकरण के द्वारा पढ़ाने के लिए बढ़ावा दिया गया है। यानी कि यदि शिक्षक बच्चों को कुछ पढ़ा रहा है तो सर्वप्रथम उस चीज की छवि बच्चों को दिखाई जाए ताकि बच्चे उन्हें महसूस कर सकें।
अनुक्रिया ( Responding ) – इस स्तर में बच्चों को जवाब देने की क्रिया सिखाई जाती है। जब बच्चे किसी ज्ञान को अर्जित कर लेते हैं तो उस ज्ञान पर हमें किस तरह से उत्तर देना है? यह बताया जाता है।
अनुमुल्यान ( Valuing ) – प्रिया करने के बाद हम उस ज्ञान का मूल्यांकन करते हैं कि वह क्रिया सही तरह से हुई या नहीं। इसमें हम भावनात्मक रूप से मूल्यांकन करते हैं।
संप्रत्यय एवम संगठन ( Organising and conceptualizing ) – इसमें विद्यार्थी भावनात्मक रूप से किए गए क्रियाओं को संगठित करता है और उस पर अपने नहीं समझ विकसित करता है। इस स्तर पर विद्यार्थी यह समझता है कि कौन सी क्रिया सही है और कौन सी गलत।
मूल्यों का चारित्रिकरण ( Characterising by values ) – जब इस स्तर पर आने के बाद विद्यार्थी सीखे गए सभी मूल्यों के आधार पर चारित्रिक करण का निर्माण करता है। इससे विद्यार्थी के भीतर अलग-अलग प्रकार के चरित्र का निर्माण होता है।
3. मनोशारीरिक पक्ष
मनोज शारीरिक पक्ष में हमारी शारीरिक गतिविधियां जुड़ी होती हैं। इसका अर्थ यह है, कि शिक्षा के द्वारा हमने जो भी सीखा उसे हम अपनी शारीरिक गतिविधियों द्वारा प्रयोग भी कर रहे हैं। इसमें कुल 6 स्तर होते हैं।
इस स्तर में शारीरिक क्रियाएं शामिल है, जैसे हमने सज्ञानात्मक और भावनात्मक पक्ष से जो भी मूल्य एवं ज्ञान अर्जित किया है, उसके आधार पर हमें अपने शरीर के अंगों द्वारा क्रियाएं करनी है।
जैसे यदि हमें प्यास लग रही है, तो हमें अपने हाथ से ग्लास को उठाकर पानी पीना है।
उद्दीपन ( Stimulation )
कार्य करना ( Manipulation )
नियंत्रण ( Control )
समन्वय ( Coordination )
स्वाभाविक ( Naturalization )
आदत ( Habit Formation )
Bloom’s टैक्सनॉमी का उपयोग क्यों किया जाता है?
ब्लूम ने 2001 के संशोधन में ब्लूम्स टैक्सनॉमी का उपयोग करने के कारणों को समझाया है जिनमें निम्नलिखित बिंदुओं का समावेश है।
शिक्षा प्रदान के सन्दर्भ में, शिक्षा प्राप्ति का लक्ष्य और उद्देश्य एक महत्वपूर्ण पहलू है और ब्लूम्स टैक्सनॉमी इन उद्देश्यों और लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता करती है। इसके द्वारा, शिक्षक और छात्र दोनों मूल्यों को समझ पाते हैं।
यदि हमें पहले से पता हो कि शिक्षा प्राप्ति का लक्ष्य क्या है, तो हम छात्रों के उद्देश्यों को भी स्पष्ट कर सकते हैं।
वर्गीकरण द्वारा, हम शिक्षकों को योजनाएं बनाने, नीतियाँ डिजाइन करने, छात्रों को उचित मार्गदर्शन प्रदान करने और छात्रों के उद्देश्यों का मूल्यांकन करने में सहायता मिलती है।